17 नवंबर 2014

मैं और वह

------------------कविता-श्रृंखला
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उसने मुझे अपने आंसुओं में रेत के महीन कणों की तरह छुपा रखा था
आंसुओं के नदी बनने से पहले
मैंने उससे कहा था : ड्रॉप दिस आइडिया..
मैं तुम्हारी पलकों पर ओस का फूल बनकर बिखरना चाहता हूं
नो, इट्स ए बैड आइडिया..
मैं तो समुद्र में विलीन होने तक तुम्हारे साथ-साथ चलना चाहती हूं :
उसने मुझे लाजवाब करते हुए कहा
तब से वह नदी है और मैं रेत
प्यारे सैलानियो, हमारे सीमांतों को गंदला न करें
अपनी लापरवाह आज़ादियों से...
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[दिलीप शाक्य ]

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