26 नवंबर 2014

मैं और वह

------------------कविता-श्रृंखला
[12]
मैं किसी काम में बिज़ी था
जब मैंने उससे कहा : कैच यू लेटर
यू कान्ट कैच मी : उसने कहा
कैच मी इफ यू कैन : मैंने सुना
काम अधूरा छोड़कर
मैं उसकी तलाश मैं निकल पड़ा
उसने अपना चेहरा किसी फूल से बदल लिया था
बसंत के विदा लेने से पहले
अब मुझे उसको पहचानना था
_________________
[दिलीप शाक्य ]

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. दिलीप जी आपकी कविताएं बहुत ही अच्छी व शब्दों से रंगत है आप की कविताओं में शब्दों का एक महत्व्पूर्ण संगम बना रखा है आप इसी प्रकार की रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं वहां भी जीने की राह जैसी रचनाएं प्रकाशित हैं जिससे आपकी रचनाएं अधिक से अधिक लोगो तक पहुंच सके ....

    जवाब देंहटाएं