6 जून 2012

स्कैच -2


एक उजड़े हुए मधुबन की हींस में
बरसों बाद
फिर छिड़ा
दो घायल पक्षियों का महारास

तपते हुए मरुस्थलों की गहरी नींद में
फिर
उतरने लगा
हरी घास का लहलहाता स्वप्न

(लम्बी कविता 'आग के उदास स्कैच' से एक अंश )
                                   
                        -दिलीप शाक्य


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें